TANWAR VANSH -
तुं सगती तंवरा तणी चावी मात चिलाय !
म्हैर करी अत मातथूं दिल्ली राज दिलाय !!
ये तंवर वंश की कुल देवी है !
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १११ कीलोमीटर दूर जयपुर-डेल्ही रोड पर कोटपुतली से 7 कीलोमीटर
दूर नीम का थाना मार्ग पर पांडवो(तंवर)की कुलदेवी का मंदिर है !यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाड़ी पर स्तहित है !मंदिर परिसर मैं उपलब्ध शिलालेख के अधर पर 650 फुट ऊँचा मंदिर एक छत्री(चबूतरा)मैं स्थित है !इस छत्री के चार दरवाजे है उसके अन्दर माता जी विराजमान है !छत्री के बाद का मंदिर 7 भवनों वाला है !मंदिर की पुनह स्थापना विक्रम सम्वंत 832 मैं पाटन तन्व्रावती के राव भोपा जी ने किया !मंदिर का मुख्या मार्ग दक्षिण मैं व् माता का नीज मंदिर का द्वार पश्चिम मैं हैं !इस मंदिर मैं माता का 8 भुजा वाला आदमकद स्वरुप स्थित है !स्थम्भो व् दीवारो पर वाम मर्गियों व् तांत्रिको की मूर्तियाँ की मूजुदगी इनका प्रभाव दर्शाती है !मदिर मैं माता को पांडवो द्वारा सतापित के साक्ष्य छत्री मैं स्थित हैं !ज्ञात रहे पांड्वो ने इसी क्षत्र मैं अग्यात्वास बतया था !मदिर की परिक्रमा मैं चामुंडा की मूर्ति है जो आज भी सुरापान करता है !मंदिर की छत्री मैं जो लाल पत्थर है वो 5 टन का है !मंदिर पीली मिट्टी से बना हुआ है पर कई से भी चूता नहीं है !मंदिर तक पहुचाने की लिए 282 सीढियाँ है !इनके मध्य मैं माता की पवन चरण की निशान हैं !यहाँ 52 भेरव व् 64 योग्नियाँ है !
सरुन्द देवी की पहाड़ी से सोता नदी बहती है जिसके पास एशिया प्रसिद्ध बावड़ी है जो बिना चुने समान्त से बांये हुए है !यह दवापर युग मैं पनावो द्वारा 2500 चट्टानों से बांये गई थी !
माता जी की कथा :-
श्री मद भगवत के अनुसार ननद गोप की घर कन्या का जनम हुआ ,जो श्री क्रिशन की जगह कार्ग्रह मैं पहुची !उस कन्या को जब कंस ने मरने की कोशीस करी तो वह उस के हाथ से चोट गयी !तभी अकस्वानी हुए की ये अदीशक्ति माता है जो कलयुग मैं जोगमाया के नाम से प्रशिद होंगी !इन्होने दुर्गम नमक दांव का वध किया था,वह जगह को दजदाह के नाम से जनि गई!
वह स्थान महाभारत कालीन विराटनगर है !जहाँ पर पांडवो ने अज्ञातकाल निकला था !यहाँ आज भी शीला पर देवी की पद चिन्ह है !
सरुन्द गाँव मैं स्थित होने की वजह से इन्हें सरुन्द माता की नाम से भी जाना जाता है !जाटू सिंह जी को बचने के लिए इन्होने चील का रूप लिया था इस कारन से इन्हें चीलाय भी कहते है !
इनका मेला वैसाख सुदी छअथ से अस्ठ्मी तक लगता है !
लोक धरना अनुसार :-
5502 वर्ष पुर्व वैसाख सुदी सप्तमी को पांड्वो दवारा पर्वत की शिखर पर माता की मूर्ति को सतापित किया गया !कहा जाता है की जब पांडव जुए मैं हार कर अग्यात्वास जाना पड़ा तब अकस्वानी हुए की तुम सती माता को स्मरण करो माता का स्मरण कर पांडवो ने विरत नगर मैं प्रवेश कीया !यहं उन्हें सोने की चिड़िया (शकुन स्वरण पक्षी)दिखा जीसे उन्होंने सुभ मान कर अपने कुलदेवी की स्तापना की !
Thanks for this post. I was searching for our kuldevi photo and i got it here. And in Hi res. Good Blog for the awareness. Keep posting!
ReplyDeleteThanks Hkm
DeleteThanks Hkm
DeleteJai Mata di
DeleteJai mata di sa
Deleteउच्च जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteबहादुर सिंह तँवर हाथीदेह
Dhanyvaad banna aap Hati deh main birajte ho kya?
DeleteGreat post.....Jai Mata Cheela Devi
ReplyDeleteGreat post.....Jai Mata Cheela Devi
ReplyDeleteGreat thanks jai chilai Mata
ReplyDeleteThanks
ReplyDeleteGood I am Bhupendra Singh Tomar
ReplyDeleteGjb jankari
ReplyDeleteThanks hukum
ReplyDeleteSurendra singh kumawat
Gotra kya hai
DeleteGood artical
ReplyDeleteThanks hum
ReplyDeleteI want complete chilay mata ji aarti
ReplyDeleteMandir ke pujari ke no mil sakte hai kya
ReplyDeleteThank hukum Tanwar thikana bharang
ReplyDeleteJai chandra vansh
ReplyDeleteJay ho
ReplyDeleteभाई तंवर वंश की शाखा (सूमाल/सोम) के बारे में जरूर बताना हमें बताया जाता है कि हम patan Rajasthan se aaye the meerut(u,p)
ReplyDeleteHukum aapke number mil sakte h kya
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