[अनंगपाल प्रथम से दिवित्य तक ]
धरम राज युदिस्टर ने इन्द्रप्रस्त बसकर उसे राजधानी बनाया !उस समय हस्तीनापुर कोरवो की राजधानी थी!जो महाभारत युद्ध के बाद पांडवो की राजधानी बन गयी !इन्द्रप्रस्त उजाड़ सा गया !इसको अनंगपाल तोमर ने दुबारा बसाया !कर्नल तोड़ ने लिखा हैं अंग्पल ने इसवी.741 [वी.सम.798]मैं इन्द्रप्रस्त pका उनह निर्माण करवाया !
कुछ इतेहस्कारो का hमानना अं की अनंगपाल तोमर ने डेल्ही को इसवी 791 या वी.सम.848 मैं पुनह बसाया था !'दील्ली aबोलती है'विष्णु खन्ना के अनुसार तोमर नरेश अनाग्पल ने इन्द्रप्रस्थ से हटकर 10 मील दक्षिण मैं प्रारंभ मैं बसाया था और अनंगपाल के नाम पर ही इसका नाम अनंगपुर पड़ा !महरोली[दील्ली के पास]गाँव मैं कुटुंब मीनार के पास लोहे की लात चन्द्र गुप्त दिव्त्य के समय की थी ,जिसको विष्णु पद पहाड़ी से उखाड़कर यहाँ लाया गया था !उस पर कई लेख लीखे हैं तःथा दील्ली 1109 अनाग्पल वाही लेख हैं !उसमे सम्वंत 1109 मैं दील्ली का बसना मन गया हैं \!परन्तु यह समय अनाग्पल प्रथम का समय नहीं है ,1109 को आंनंद सम्वंत माना जाये तो विक्रम सम्वंत 1200i बनता हैं ,यह समय अनाग्पल द्वित्य का था !दील्ली स्तापना की किद्वंती इस परकार ह की अनाग्पल ने ज्योतिस्यो की राय के अनुसार यह लोहे की कील्ली गड्वाई,जिसकी नोक शेषनाग के फ़न पर टीकी परन्तु राजा को विस्वाश नहीं हुआ !अतः सत्य जचने के लिए इस कील्ली को वापस उखाड़ा गया तो इस कील्ली की नोक खून से सनी हुए थी !अतः इसे पुनह गद दीया गया पर यह ढीली रह गयी !ज्योत्सीयों ने कहा की अब्ब यह 'ढीली'रहेगी !तबसे इन्द्रप्रस्त का नाम ढीली से दील्ली पड़ा !यह स्पस्ट नहीं कहा जा सकता की दील्ली की स्तापना कब हुई,परन्तु इससे यह माना जा सकता हैं की नोवी सदी मैं अनाग्पल ने इन्द्रप्रस्थ का राज्य प्राप्त किया था !दील्ली पर अनंगपाल प्रथम से देवित्य तक 20 तंवर वंशीय राजा ने राज्य कीया !
अनंगपाल प्रथम,वासुदेव,गान्ग्य,प्रथ्वीमल,जयदेव,नीरपाल[हरीपाल],अधीराज/अदेह्राज,विजय,विक्ष/अनेक,rikshpaal,सुखपाल[नेक्पाल],गोपाल,सलाक्शंपाल,जैपाल.कुंवरपाल,अनंगपाल दिवित्य !
[तन्व्रावती इतीहास]
लेखक-डा.महवीर प्रसाद
अनाग्पाल,जावल,गांवल,छोटेपाल,खद्ग्पाल,गेर्मेर,नीभाग,नर्क्षम,नल,दर्लभ,शंकर,तीभी,दुर्ग्बदन,दुर्ग्बहू,
मनभर,करबल,कालींग,कंधाव,अनाग्पल दिवित्य !
ऐतिहासिक स्रोत के अनुसार : - तंवर वंश का कार्यकाल इस प्रकार हैं :-
अनाग्पाल[सन.791 ][विक्रम सम्वंत 848 ]:- मैं इस राजा ने उजड़े हुए इन्द्रप्रस्थ को बसाया !कुछ विद्वानों के अनुसार सन.741 मैं बस्य गया !अनाग्पाल बहुत ही प्रतापी शाषक था !वैदिक यज्ञो का पुनः प्रचार कीया व् वैदिक मतों को पुनः स्थापीत कीया !
रुद्रेण या रूद्रपाल या शीवपाल :- यह अजमेर के सखाम्भारी नरेश चन्द्रराज चौहान से युद्ध करते हुए वीरगती को प्राप्त हुए !विक्रम सम्वंत 1030 के हर्ष के शीलालेख मैं इसका उलेख हैं !उसमे लीखा हैं :-
पुत्र श्री चंद्रराजोभाव्द्मल यशासत्सय तीरवप्रताप :
सुनुस्तसयाथ भूपह प्रथम इत्र पुनगुरवकाखय प्रतापी :
तस्मास्ची चन्दनो भूतीक्षतित्तवतीभयदस्तोम्रेश सदपर्य,
हत्वारुद्रेणभव्म समर [भुवी][ब]लाघे[न लब्ध]जय श्री : [4 ]
[अरथात निर्मल या और प्रताप वाला उसका पुत्र चाद्रराज हुआ !चन्द्रराज का पुत्र प्रथम गुहक की भांती प्रतापी गुहक हुआ उसका पुत्र चन्दन था !राजागन उससे भय भीत रहते थे !उसने गर्वीले तोम्रेश [तोमरो का इश ] रुद्रेण को युद्ध मैं मारकर अपने बहुबल से विजय प्राप्त की !]
[नीमन राजा कनोज के प्रतीहार के अधीन रहे !]
सहदेवपाल,जयदेवपाल,तंत्रपाल,या तेजपाल दिवित्य ने अजमेर व् शाकम्भारी के चौहान बारूपराय प्रथम पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुआ,यद मैं इ.917 मैं वीरगति प्राप्त की तत्पअस्चात मदनपाल प्रथम,कीर्ति पाल,लावंपाल[चौहान नरेश नरेश सिंह राज से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त]प्रथ्वी पाल,विरहपाल या विक्रमादियित्य दिवित्य,तिहान्पाल,सुलाक्शंपाल या लखनपाल,जयपाल दिव्त्य,स्वतंत्र शासक के रूप मैं गद्दी पर बैठे !इनके समय मैं दिल्ली,पंजाब,हरयाणा,फुकतून क्षेत्र तथा जम्मू मैं इनका शासन था !काफी लम्बे समय तक इन्होने यहाँ शासन किया !गजनी के सुल्तान सुबकर्गिन के आक्रमण को 997 इ. मैं वेफल किया !
सम्राट अनान्न्द्पाल [इ. 1005 से 1012 इ. तक ]
विलोचन [इ. 1012 से 1018 इ. तक]
भीमपाल [इ. 1018 से 1040 इ. तक]
महिपाल [इ. 2040 से 1072 इ. तक]
(इन्होने महिपालपुर बसाया)
देवपाल [इ. 1078 से 1108 इ. तक]
मदनलाल दिवित्य उर्फ काह्नव [इ. 1078 से 1148 इ. तक]
इनके समय जिन्चंद सूरी एक मुसलमान भक्त बनकर आया व् सारा भेद लेकर चला गया !मदनलाल के काल तक लाहोर पर मुस्लिम शासन प्रभाव शाली हो गया !
अनाग्पल दिवित्य [इ. 1148 से इ. 1161 इ. तक]शासन किया !
अनाग्पल तोमर ने लाल किला अपना राज महल,अपने इष्ट देव का मंदिर [जमा मस्जिद]बनवाया!लालकिले पर सोने की जंजीर टागी !तंवरो का उस समय दिल्ली,हरयाणा,पंजाब पर राज्य था !दिल्ली के अंतिम राजा अंगपाल ने अपनी तीन पुत्रियों का विवाह निम्न प्रकार हुआ :-
[1]देसल देवी का विवाह शाखाम्भरी [अजमेर]के राजा विग्रह राज चतुर्थ से !
[2]कमलादेवी का विवाह विग्रहराज के छोटे भाई सोमेश्वर से !
[3]विमलादेवी का विवाह कनोज के राठोर गहरवार राजा विजयपाल से !
अनाग्पाल के तीन पुत्रो का वर्णन मिलता हैं,पर यह साफ़ नही होता की कितने पुत्र थे!1161 इ. मैं अनाग्पल के दोहिते प्रथ्वी राज चौहान द्वारा दिल्ली पर अधिपत्य करने के बाद अनंगपाल मेरठ की तरफ अनंत्पुरी नमक जगह पर अपनी कुटया बने,वही सन्यास धारण किया,और वाही स्वर्ग सिधारे !तीन पुत्रो निमं प्रकार एनी जगह बसे :-
[1] सबसे बड़े उमजी[मानजी]जैसलमेर [राजस्थान]आ गए ,इनकी छठी पीढ़ी मैं अजमल जी थे उनके पुत्र रामदेव जी व् विरमदेव जी थे !रामदेव जी राजस्थान के 5 लोकदेवता मैं रामसा पीर के मान से भी जाने जाते हैं,इन्होने रुनिचा [जैसलमेर]मैं समाधि ली !इन दोनों भाइयों के वंसज रुनिचा तंवर कहलाते हैं !
[2] दिवित्य पुत्र शालिवाहन [सालून]हुए,आप तनवरावटी की तरफ आये !
[3] तीसरे पुत्र तनवर पाल जी मध्य भारत की और गए व् तंवरधार या तोमरधार बसाया !
कुछ इतिहासकारों ने इ 161 इ. की घटना को 1151 इ. भी माना हैं !इस प्रकार अनाग्पल दिवित्य के बाद दिल्ली पर तंवरो का स्वतंत्र शासन नहीं रहा !
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