Friday, 25 May 2012


                                                वंश दर्शक 

1.गोत्र                        :-वयाग्रप्रद या गाग्र्या 
2.विरुद्ध                     :-जावला नरेश ,खालेश नरेश 
3.प्रवर                       :-तीन गाग्र्या,कोस्तूभ ,मांड्य
4.शाखा                      :-वाजसेन्यी माहयांन्दिनी 
5.सूत्र                         :-पारस्कर ग्रह्यसूत्र
6.कुलदेवी                  :-चिलायमाता या श्रवणदेवी या सरुंड माता 
7.ध्वज                      :-पचरंगा 
8.वृक्ष                         :-गूलर  
9.प्रमुख नदी              :-तुंगभद्रा 
10.निशान                 :-हरा 
11.वेद                        :-यजुर्वेद 
12.वंश                       :-चन्द्रवंश 
13.नगारा                  :-रणजीत 
14.घोडा                     :-सावकरण 
15.प्रमुख गद्दी            :-इन्द्रप्रस्थ 

Sunday, 6 May 2012

                                                         दील्ली राज्य
                                                   [अनंगपाल प्रथम से दिवित्य तक ] 

धरम राज युदिस्टर ने इन्द्रप्रस्त बसकर उसे राजधानी बनाया !उस समय हस्तीनापुर कोरवो की राजधानी थी!जो महाभारत युद्ध के बाद पांडवो की राजधानी बन गयी !इन्द्रप्रस्त उजाड़ सा गया !इसको अनंगपाल तोमर ने दुबारा बसाया !कर्नल तोड़ ने लिखा हैं अंग्पल ने इसवी.741 [वी.सम.798]मैं इन्द्रप्रस्त pका उनह निर्माण करवाया !
    कुछ इतेहस्कारो का hमानना अं की अनंगपाल तोमर ने डेल्ही को इसवी 791 या वी.सम.848 मैं पुनह बसाया था !'दील्ली aबोलती है'विष्णु खन्ना के अनुसार तोमर नरेश अनाग्पल ने इन्द्रप्रस्थ से हटकर 10 मील दक्षिण मैं प्रारंभ मैं बसाया था और अनंगपाल के नाम पर ही इसका नाम अनंगपुर पड़ा !महरोली[दील्ली के पास]गाँव मैं कुटुंब मीनार के पास लोहे की लात चन्द्र गुप्त दिव्त्य के समय की थी ,जिसको विष्णु पद पहाड़ी  से उखाड़कर यहाँ लाया गया था !उस पर कई लेख लीखे हैं तःथा दील्ली 1109 अनाग्पल वाही लेख हैं !उसमे सम्वंत 1109 मैं दील्ली का बसना मन गया हैं \!परन्तु यह समय अनाग्पल प्रथम का समय नहीं है ,1109 को आंनंद सम्वंत माना जाये तो विक्रम सम्वंत 1200i बनता हैं ,यह समय अनाग्पल द्वित्य  का था !दील्ली स्तापना की किद्वंती इस परकार ह की अनाग्पल ने ज्योतिस्यो की राय के अनुसार यह लोहे की कील्ली गड्वाई,जिसकी नोक शेषनाग  के फ़न पर टीकी परन्तु राजा को विस्वाश नहीं हुआ !अतः सत्य जचने के लिए इस कील्ली को वापस उखाड़ा गया तो इस कील्ली की नोक खून से सनी हुए थी !अतः इसे पुनह गद दीया गया पर यह ढीली रह गयी !ज्योत्सीयों ने कहा की अब्ब यह 'ढीली'रहेगी !तबसे इन्द्रप्रस्त का नाम ढीली से दील्ली पड़ा !यह स्पस्ट नहीं कहा जा सकता की दील्ली की स्तापना कब हुई,परन्तु इससे यह माना जा सकता हैं की नोवी सदी मैं अनाग्पल ने इन्द्रप्रस्थ का राज्य प्राप्त किया था !दील्ली पर अनंगपाल प्रथम से देवित्य तक 20 तंवर वंशीय राजा ने राज्य कीया !

      अनंगपाल प्रथम,वासुदेव,गान्ग्य,प्रथ्वीमल,जयदेव,नीरपाल[हरीपाल],अधीराज/अदेह्राज,विजय,विक्ष/अनेक,rikshpaal,सुखपाल[नेक्पाल],गोपाल,सलाक्शंपाल,जैपाल.कुंवरपाल,अनंगपाल दिवित्य !
                                                                                                               [तन्व्रावती इतीहास]
                                                                                                                       लेखक-डा.महवीर प्रसाद 

अनाग्पाल,जावल,गांवल,छोटेपाल,खद्ग्पाल,गेर्मेर,नीभाग,नर्क्षम,नल,दर्लभ,शंकर,तीभी,दुर्ग्बदन,दुर्ग्बहू,
मनभर,करबल,कालींग,कंधाव,अनाग्पल दिवित्य !


   ऐतिहासिक स्रोत के अनुसार : - तंवर वंश का कार्यकाल इस प्रकार हैं :-
       
      अनाग्पाल[सन.791 ][विक्रम सम्वंत 848 ]:- मैं इस राजा ने उजड़े हुए इन्द्रप्रस्थ को बसाया !कुछ विद्वानों के अनुसार सन.741 मैं बस्य गया !अनाग्पाल बहुत ही प्रतापी शाषक था !वैदिक यज्ञो का पुनः प्रचार कीया व् वैदिक मतों को पुनः स्थापीत कीया !
      
      रुद्रेण या रूद्रपाल या शीवपाल :- यह अजमेर के सखाम्भारी नरेश चन्द्रराज चौहान से युद्ध करते हुए वीरगती को प्राप्त हुए !विक्रम सम्वंत 1030 के हर्ष के शीलालेख मैं इसका उलेख हैं !उसमे लीखा  हैं :-
     
      पुत्र श्री चंद्रराजोभाव्द्मल  यशासत्सय तीरवप्रताप :
      सुनुस्तसयाथ  भूपह प्रथम इत्र पुनगुरवकाखय प्रतापी :
  तस्मास्ची चन्दनो भूतीक्षतित्तवतीभयदस्तोम्रेश सदपर्य,
 हत्वारुद्रेणभव्म  समर [भुवी][ब]लाघे[न लब्ध]जय श्री : [4 ]

[अरथात निर्मल या और प्रताप वाला उसका पुत्र चाद्रराज हुआ !चन्द्रराज का पुत्र प्रथम गुहक की भांती प्रतापी गुहक हुआ उसका पुत्र चन्दन था !राजागन उससे भय भीत  रहते थे !उसने गर्वीले तोम्रेश [तोमरो का इश ] रुद्रेण को युद्ध मैं मारकर अपने बहुबल से विजय प्राप्त की !]

[नीमन राजा कनोज के प्रतीहार के अधीन रहे !] 
सहदेवपाल,जयदेवपाल,तंत्रपाल,या तेजपाल दिवित्य  ने अजमेर व् शाकम्भारी के चौहान बारूपराय प्रथम पर आक्रमण किया परन्तु पराजित हुआ,यद मैं इ.917 मैं वीरगति प्राप्त की तत्पअस्चात मदनपाल प्रथम,कीर्ति पाल,लावंपाल[चौहान नरेश नरेश सिंह राज से युद्ध करते हुए वीरगति को प्राप्त]प्रथ्वी पाल,विरहपाल या विक्रमादियित्य दिवित्य,तिहान्पाल,सुलाक्शंपाल या लखनपाल,जयपाल दिव्त्य,स्वतंत्र शासक के रूप मैं गद्दी पर बैठे !इनके समय मैं दिल्ली,पंजाब,हरयाणा,फुकतून क्षेत्र तथा  जम्मू मैं इनका शासन था !काफी लम्बे समय तक इन्होने यहाँ शासन किया !गजनी के सुल्तान सुबकर्गिन के आक्रमण को 997 इ. मैं वेफल किया !
     सम्राट अनान्न्द्पाल [इ. 1005 से 1012 इ. तक ]
      विलोचन [इ. 1012 से 1018 इ. तक]
      भीमपाल [इ. 1018 से 1040 इ. तक]
      महिपाल [इ. 2040 से 1072 इ. तक]
      (इन्होने महिपालपुर बसाया)
      देवपाल   [इ. 1078 से 1108 इ. तक]
      मदनलाल दिवित्य उर्फ काह्नव [इ. 1078 से 1148 इ. तक]
इनके समय जिन्चंद सूरी एक मुसलमान भक्त बनकर आया व् सारा भेद लेकर चला गया !मदनलाल के काल तक लाहोर पर मुस्लिम शासन प्रभाव शाली हो गया !
   अनाग्पल दिवित्य [इ. 1148 से इ. 1161 इ. तक]शासन किया !
अनाग्पल तोमर ने लाल किला अपना राज महल,अपने इष्ट देव का मंदिर [जमा मस्जिद]बनवाया!लालकिले पर सोने की जंजीर टागी !तंवरो का उस समय दिल्ली,हरयाणा,पंजाब पर राज्य था !दिल्ली के अंतिम  राजा अंगपाल ने अपनी तीन पुत्रियों का विवाह निम्न प्रकार हुआ :-
[1]देसल देवी का विवाह शाखाम्भरी [अजमेर]के राजा विग्रह राज चतुर्थ से !
[2]कमलादेवी का विवाह विग्रहराज के छोटे भाई सोमेश्वर से !
[3]विमलादेवी का विवाह कनोज के राठोर गहरवार राजा विजयपाल से !
अनाग्पाल के तीन पुत्रो का वर्णन मिलता हैं,पर यह साफ़ नही होता की कितने पुत्र थे!1161 इ. मैं अनाग्पल के दोहिते प्रथ्वी राज चौहान द्वारा दिल्ली पर अधिपत्य करने के बाद अनंगपाल मेरठ की तरफ अनंत्पुरी नमक जगह पर अपनी कुटया बने,वही सन्यास धारण किया,और वाही स्वर्ग सिधारे !तीन पुत्रो निमं  प्रकार एनी जगह बसे :-
[1] सबसे बड़े उमजी[मानजी]जैसलमेर [राजस्थान]आ गए ,इनकी छठी पीढ़ी मैं अजमल जी थे उनके पुत्र रामदेव जी व् विरमदेव जी थे !रामदेव जी राजस्थान के 5 लोकदेवता मैं रामसा पीर के मान से भी जाने जाते हैं,इन्होने रुनिचा [जैसलमेर]मैं समाधि ली !इन दोनों भाइयों के वंसज रुनिचा तंवर कहलाते हैं !


[2]  दिवित्य पुत्र शालिवाहन [सालून]हुए,आप तनवरावटी की तरफ आये !

[3] तीसरे पुत्र तनवर पाल जी मध्य भारत की और गए व् तंवरधार या तोमरधार बसाया !

कुछ इतिहासकारों ने इ 161 इ. की घटना को 1151 इ. भी माना हैं !इस प्रकार अनाग्पल दिवित्य के बाद दिल्ली पर तंवरो  का स्वतंत्र शासन नहीं रहा !






कुछ गलती हो तो क्षमा करे व् अपने विचार अवश्य बताये ! 
          
     

          

Monday, 16 April 2012

                                          तंवर वंशावली 


                                                अर्जुन के सूत सो भये अभिमन्यु नाम उदार !
                                                तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार   !

इस वंश का नाम महाभारत की बाद आया !कहा जाता है की सृष्टी की रचयता भगवन विष्णु से कमल की उत्पत्ति हुई !कमल से ब्रह्मा,ब्रह्मा से अत्री,अत्री से चंद्रमा की उत्पत्ति मानी जाती हैं !चंद्रमा से वंश आगे बढ़ने की कारन यहाँ वंश 'चन्द्रवंश'कहलाया !
     चंद्रमा की तीसवी पीढ़ी मैं परम प्रतापी कुरु का जनम हुआ,इसी कारन ये वंश आगे 'कुरु वंश'से जाना जाने लगा !कुरु वंश की 14 वि पीढ़ी मैं पाण्डु का जनम हुआ !तंवर वंश की उत्पत्ति की बारे मैं तारक व् कथ्य प्रचलित हैं:-
{1}पांडव वंसी अर्जुन ने नागवंशी क्षत्रियो  को अपना दुश्मन बना लिया !नागवंशी क्षत्रियो ने पांड्वो को मारने का प्रण ले लिया था,पर पांडवो के राजवेध धन्वन्तरी के होते हुए वे पंडो का कुछ न बिगड़ पाए !अतः उन्होंने धन्वन्तरी को मर डाला !इसके बाद अभीमन्यु पुत्र परीक्षित को मार डाला !परीक्षित के बाद उसका पुत्र जन्मेजय राजा बना !अपने पिता का बदला लेने के लिए जन्मेजय ने नागवंश के नौ कूल समाप्त कर दिए !नागवंश को संपत होता देख उनके गुरु आस्तिक जो की जत्कारू के पुत्र थे,जन्मेजय के दरबार मैं गए व् सुझाव देय की किसी वंश  को समूल नस्त नहीं किया जाना चाहिए व् सुझाव दिया  की इस हेतु आप को यग्य करे !महाराज जन्मेजय के पुरोहित कवष के पुत्र तुर इस यग्य की अध्यक्ष बने !इस यग्य मैं जन्मेजय के पुत्र,पोत्र अदि दीक्षित हुए !क्योकि इन सभी को तुर ने दीक्षित किया था इस कारन ये पांडव तुर,तोंर या बाद मैन्तान्वर या तोमर कहलाने लगे !
                                                                                      [राजपूत वंशावली पृष्ठ 228 ]
                                                                                      लेखक - ठा.इश्वर सिंह मठाथ

{2}कुछ विद्वानों का मत है की तुर,तुंवर,तोंर,तोमर,तंवर अदि का जैन साहितिक भाषा मैं अर्थ होता हैं 'सर्वोच्च'चुकी अदि काल से इन्द्रप्रस्त की गद्दी को सर्वोच्च माना गया था !अतः इनके वंसज तुंवर,तोंर,तोमर,तंवर अदि कहलाये !

{3}बद्वो की भाई की अनुसार तुन्ग्पाल(तोमरपाल)के वंसज तोमर या तंवर कहलाये ![क्षत्रिय  राजवंश भाग - 3 के प्रस्ट 35 पर तुन्ग्पाल का वंश बड्वो के अनुसार इस प्रकार हैं :-

अर्जुन-अभिमन्यु-परीक्षित-जन्मेजय-अश्वमेघ-दलीप-छत्रसाल-चित्ररथ-पुस्त्सल्य-उग्रसेन-कुमार-सेन-भवनती-रणजीत-रिशिक-शुख्देव-नरहरिदेव-सुचिरथ-शूरसेन-दलीप 2 -पूरनमल-कदरबिन-आप्भिक-उदयपाल-यदुन्पल-ध्यात्राज-भीमपाल-शेमक-रंक्षामी-पुरसेन-बिसरवा-प्रेमसेन-सजरा-अभयपाल-वीरसाल-अमर्चुड-हरिजिवी-अजीतपाल-सरपदन-वीरसेन-महेशदत्ता-महानिभ-समुद्रासेन-शत्रुसाल-धरमध्वज-तेजपाल-बालिपल-सहायपाल-देवपाल-गोविन्दपाल-हरिपाल-गोविन्दपाल द्वितय-हरसिंहपाल-अमृतपाल-प्रेमपाल-हरिश्चंद्र-महेंद्रपाल-छत्रपाल-कल्याणसेन-केशवसेन-सोमचंद्र-रघुपाल-नारायण-भानुपाल-परमपद-दामोदरसेन-चतारशल-महेसपाल-ब्रजगसेन-अभयपाल-मनोहरदास-सुखराज(तंगराज)-तुन्ग्पाल(तोमरपाल)-अनाग्पल तोमर !
   
        इस प्रकार तुन्ग्पाल के पुत्र अनाग्पल तोमर व् वंसज तोमर व् तंवर कहलाये !
     
        इस प्रका तोमर(तंवर) वंश क्षत्रियो के पूर्वज अनंगपाल प्रथम से पूर्व का इतिहास अंधकार मैं हैं !बड्वो की बही के अलावा किसी ताम्र पत्र ,शिलालेख या साहित्य मैं उल्लेख नहीं मिलता परन्तु परम्परा और बड्वो के अनुसार यह स्पस्ट हो जाता हैं की तंवर पाण्डु पुत्र अर्जुन के वंसज हैं !तन्वारो का चन्द्र वंसी होना क्षत्रिय भास्कर,प्रथ्वीराज रासो ,बीकानेर वंशावली, से पता लगता हैं !कर्नल तोड़ ने भी tanwaro को चंद्रवंशी माना हैं !

   

Monday, 12 March 2012

उदय सींह जी 
                           (संस्थापक  भूदोली ,तन्वारावाटी )

संक्षिप्त इतीहास :-

   श्री उदय सींह जी महाराज राज श्री डूंगर सींह जी के छोटे पुत्र थे इनका निवास स्थान गावंडी था !महाराज का जनम विक्रम सम:1585 के लगबघ मन जाता है !डूंगर सींह जी वी.स. 1590 मै रायमल शेखावत व् हिन्दाल के बीच हुए युद्ध मैं काम आये !उनके भाई  श्री भीवराज का राज्य अभीसेक हुआ मगर दूसरी रानी के पुत्र होने की वजह से आप के साथ भेदभाव होने लगा !अतः उनकी माता हाड़ी रानी उन्हें लेकर अपने पीहर बूंदी ले कर चली गई !उदय सींह जी का लालन पालन वही पर हुआ !
               जब उदय सींह जी 15 साल के हुए तो उन्होंने अपनी माता से आग्रह किया की हमे अपने देश चलकर भाई भीवराज से अपने राज्य का हीस्सा लेकर वही रहना चाहीये !इस पर उनकी वीदुशी माता ने कहा की अपने पिता जी के स्वामी भगत सेवको मैं से नाथूराम मीना को अपने साथ रखना !यह हर वक्त आप की रक्षा व् देख रेख करता था !
        श्री उदय सींह जी गावड़ी पहुंचे तो आप के भाई भीवराज जी के द्वारा कहा गया की खंडेला राव(जो की उस समय नीर्वानो के अधीन था)हमारे राज्य की गायो को ले गाये हैं अगर तुम उन्हें ले कर आगये तो तुमे अधिकार दे दूंगा !
           यह आज्ञा पा कर आप ने खंडेला पर आक्रमण का गायो को मुक्त करा लिया !वापस आते समय गावड़ी से दो कोस पहले चंद्रभागा नदी के किनारे विश्राम करने लगे !वह आप ने नाथूराम मीना को कहा की मेरा मन यहाँ पर बसने को करता है तुम शगुन वीचारो,इस पर नाथूराम मीना ने शगुन वीचारे व् बताया की महराज आपके की यहाँ हमेशा खांडे जीत रहेगी व संम्पन गाँव रहेगा !तब सभी सत्यों सहीत गावड़ी पधारे और कुछ समय बाद 1636 वी.सम. मैं गाँव (भूदोली)बसाया !
       महाराज उदय सींह की तीन शादीयाँ हुई,तीनो रानीयों से कोई संतान ना होने पर अपने भाई के लड़के भगवानदास जी को गौड़ लीया !संयोग से गौद संस्कार होने के बाद तीनो रानीयों के तीन पुत्र हुए जिनके नाम श्री केशवदास ,श्री देवदास व श्री नरदास रखे गए !आप की पुत्र होने पर भगवानदास जी (दात्क्पुत्र) ने कहा की मैं अब्ब यहाँ नहीं रहूँगा !और श्री भगवानदास जी ने चीपलाटा की जागीर प्राप्त की !
     
भूदोली के गाँव :-
       आगवाडी,कुर्बडा,माल्यवाली,झीराना,खोरा,ढाणी हरी सींह,ढाणी बहादुर सींह,नालिवाला हैं इन सभी गाँव मैं उदय सींह जी के वंसज रहते हैं !

मर्त्यु :-

   उदय सींह जी मर्त्यु धोखे से हुई थी !जब आप अपने बड़े भाई से मीलने गावड़ी गए तो ब्रह्मण कन्या द्वारा आपको जहर दे देय गया !आप अपने अनुचरो सहीत भूदोली आ रहे थे तब आप को आभास हो गया और आप ने कहा की मेरा घोडा जहाँ रुके वहीँ पर मुझे तपना दे जाये !घोडा उद्दालक मुनि की धुनी पर आकर रुक गया ,वही पर आप को श्री भगवानदास जी द्वारा तपना दे देगाये !उस दिन भाद्रपद अमावस्या थी !इस दीन आप की पुन्य तीथी पर मेला लगता है !इसी स्थान पर आप का भव्य मंदिर बनया गया !आप की पूजा लोकदेवता की रूप मैं की जाते हैं ! 

Sunday, 11 March 2012


चनद्रवंशी क्षत्रीय तंवर वंश   




                    अर्जून श्री कृषण के साथ कुरुक्ष्ट्र मैं ज्ञान का बोध करते हुए 


चनद्रवंशी महाराज भूव्न्पति  के पुत्र मरज रणजीत जी ने 65 वर्ष 10 माह 04 दिन राज्य कीया !इनकी नवी पीढ़ी पर महाराज नरहरिदेव जी हुए इन्होने 45 वर्ष 11 माह 23 दिन राज्य कीया !इनकी सातवी पीढ़ी पर मह्रक भीमपाल जी ने 58 वर्ष 05 माह 08 दिन राज्य कीया!इनके पुत्र क्षेमक जी  हुए इन्होने 48 वर्ष 11 माह 21 दिन राज्य कीया !इनके बाद भारत वंश का राज्य कुछ समय के लिए एनी वन्सो के अधीन चला गया !इनके पुत्र रणंजय जी की पुत्र श्री इन्दार्धमन जी ने पुनः भारत वर्ष की सत्ता सम्हाली !महाराज ने एक मंदिर भगवन विष्णु का लकोट(लाहोर)मैं बनवाया !इनकी पन्दह्र्वी पीढ़ी पर महराज सूरज जी हुए व् इनकी सातवी पीढ़ी पर महराज नर्बहंपाल जी हुए !इनके पुत्र राज्रीशी तुम्र्पाल जी हुए इनके वंसज तंवर(तोमर)कहलाये !
    युदिश्टर सम्वंत 2656 मैं राज्रीशी तुम्र्पाल जी ने तुंगभद्रा नदी पर बोध मत के चार सो (400)प्रक्षिसित अनुययो को साथ लेकर एक सभा की जिसमे उनके वीचारो को परिवर्तित कीया व् क्षत्र्य वंश के लिए नियम बनाए !जिनमे मुख्यत अपने गोओर,परवर,साखा को  याद रखना,शत्रु को क्षमा मांगने पर माफ़ करना,गाय,ब्राहमण,स्त्री,को सम्मान देना अदि नियम बना कर सपथ दिलाई  !महाराज राज्रीशी का विवाह राष्ट्रावर रजा कनाक्पल की पुत्री यशोदा के साथ हुआ !इनके चार पुत्र हुए श्री शिवराज,भोजराज,पूंजराज और चन्द्राज !युदिश्तर सम्वंत २७१२ मैं श्री पूंजराज ने यूनान के राजा सिकंदर को पराजित कर विजयश्री प्राप्त करी !महराज पूंजराज का वीवाह चौहान वंसज अनंगपाल जी की पुत्री यशोधरा के साथ हुआ !इनके पुत्र महाराज गिरिराज हुए !इनके चोथी पीढ़ी पर महाराज वीरभान हुए !इन्होने युधिस्तर सम्वंत 2958  मैं पुनः क्षत्रीय को संघटित कर सभा की व् सद्मार्ग पर चलने की सपथ ली !युधिस्तर सम्वंत 3044 वय्तित होने पर परमार राजा विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वंत प्रारम्भ कीया !
      महराज युधिस्तर सम्वंत 3101 व् विक्रम सम्वंत 57 से इसवी सन आरंभ हुआ !इनकी 11 वी पीढ़ी पर महराज मंगल्पल जी पुत्र प्र्ताप्पाल (गोप्सद जी)महराज का नाम गोप्सद था पर महाप्रतापी होने की कारन ये प्रताप्पाल के नाम से प्रशिध हुए !महराज 560 मैं हस्तीनापुर की मांडलिक राजा हुए !इनके पञ्च रानिय थी !बड़ी रानी के चार पुत्र थे जिनमे से बड़े कंद जी थे !कंद जी के पुत्र अनाग्पल जी हुए !महराज प्र्ताप्पाल जी के दुसरे पुत्र जत्पल जी व् तीसरे पुत्र सोमपाल जी चोथे पुत्र वीरपाल जी हुए !दूसरी रानी के तीन पुत्र तन्वार्पाल जी,रेक्पल जी व् jमहिपाल जी हुए !तीसरी रानी के पञ्च पुत्र संकल्पाल,उग्रपल,विशय्पल जी व् कर्यपाल जी हुए!चोथी रानी के दो पुत्र पहुश्पल जी व् लोध्पल जी हुए !पांचवी रानी के तीन पुत्र jहरपाल इ,जग्भंपल जी तथा समुद्रपल जी हुए !श्री जटपाल जी के वंसज जाटू तंवर कहलाये !इनके राजधानी तोध्गढ़ थी !जाटू तन्वारो की पञ्च साखा हुए शिपल,कालीया,सेडा,भेया,बोदाना  !इस प्रकार चन्द्र vansही क्षत्र्याओं की सोलह शाखा हुए !इनमेजाटू,जावला,इन्दोलिया,पोर्वंसी,हर्वंशी,बिसारे,जग्भानोत,सोमवल,रेकवाल,रुनेचा,ग्वेलेरा,बेरुवर,बिल्दार्य,अगन्सुन्दी आदीका प्रमाण वंश लेखकको की बही से मिलता है !तंवर सम्पुरण भारत मैं विघमान है !जिनका सहसन सभी जगह रहा है !
         महराज अनाग्पल जी की पुत्र वासदेव जी के पुत्र गंग्देव जी के 11 वी पीढ़ी पर महराज जुनाह्पल हुए !इनके चार पुत्र हुए बड़े पुत्र हुए अनंगपाल जी !महराज अनंगपाल जी डेल्ही के अंतिम राजा हुए !महराज के पुत्र नहीं था केवल दो पुत्री थी !महराज अनंगपाल ने अपने दोह्त्र प्रथ्वीराज चौहान को देलही का राज्य सोंप कर तीर्थ यात्रा पर चले गए !महराज अनंगपाल जी की छोटे भाई jसलमान इ ने गढ़ नर्ड का राजपाट संभाला !महराज प्रताप्पाल के पुत्र जग्भंपल ने विक्रम सम्वंत 630 मैं अपने राजधानी लाकोट(लाहोर)मैं बनाई !इनके पुत्र महराज जग्वाहन्पल जी ने विक्रम सम्वंत 650 मैं अश्वमेघ यग्य कीया जिसमे पांच सो मन से ज्यदा की समध का उपयोग हुआ था !इन्होने विक्रम सम्वंत 655 मैं लाहोर को छोड़ कर वापस हस्तीनापुर को राजधानी बनया !इनकी छठी पीढ़ी पर महराज ब्रहमपाल जी हुए !इनके पुत्र महराज पत्तान्पल जी हुए !महराज पतंपल जी ने विक्रम संवंत 828 मैं देलही के दक्षिण मैं पाटन नगर बसाया !इनके आठवी पीढ़ी मैं महराज संग्पल जी  हुए !उनके दो पुत्र हुए राजपाल जी व् वीरपाल जी !वीरपाल जी को गढ़ नर्ड के राजा नीहाल जी ने गोद ले लिया !राजा वीरपाल जी ग्यारवी पीढ़ी पर राजा प्रथ्वीराज जी हुए !इनके चोदह रानी  थी !इन रानीयो से बत्तीश पुत्र हुए !इसी से पाटन के पास तंवर बत्तीसी बोली जाते हैं !इनके सातवी पीढ़ी पर महराज लख जी हुए !जिन्हें राव के उपाधी मीली !
        यह सम्पुरण तथ्य वंश लेखको की बहीयो मैं दर्ज हैं !

Tuesday, 14 February 2012



TANWAR VANSH -
तुं सगती तंवरा तणी चावी मात चिलाय !
म्हैर करी अत मातथूं दिल्ली राज दिलाय !!

ये तंवर वंश की कुल देवी है !
राजस्थान की राजधानी जयपुर से करीब १११ कीलोमीटर दूर जयपुर-डेल्ही रोड पर  कोटपुतली से 7 कीलोमीटर
दूर नीम का थाना मार्ग पर पांडवो(तंवर)की कुलदेवी का मंदिर है !यह मंदिर अरावली श्रंखला की पहाड़ी पर स्तहित है !मंदिर परिसर मैं उपलब्ध शिलालेख के अधर पर 650 फुट ऊँचा मंदिर एक छत्री(चबूतरा)मैं स्थित है !इस छत्री के चार दरवाजे है उसके अन्दर माता जी विराजमान है !छत्री के बाद का मंदिर 7 भवनों वाला है !मंदिर की पुनह स्थापना विक्रम सम्वंत 832 मैं पाटन  तन्व्रावती के राव भोपा जी ने किया !मंदिर का मुख्या मार्ग दक्षिण मैं व् माता का नीज मंदिर का द्वार पश्चिम मैं हैं !इस मंदिर मैं माता का 8 भुजा वाला आदमकद स्वरुप स्थित है !स्थम्भो व् दीवारो पर वाम मर्गियों व् तांत्रिको की मूर्तियाँ की मूजुदगी इनका प्रभाव दर्शाती है !मदिर मैं माता को पांडवो द्वारा सतापित के साक्ष्य छत्री मैं स्थित हैं !ज्ञात रहे पांड्वो ने इसी क्षत्र मैं अग्यात्वास बतया था !मदिर की परिक्रमा मैं चामुंडा की मूर्ति है जो आज भी सुरापान करता है !मंदिर की छत्री मैं जो लाल पत्थर है वो 5 टन का है !मंदिर पीली मिट्टी से बना हुआ है पर कई से भी चूता नहीं है !मंदिर तक पहुचाने की लिए 282 सीढियाँ है !इनके मध्य मैं माता की पवन चरण की निशान हैं !यहाँ 52 भेरव व् 64 योग्नियाँ है !
सरुन्द देवी की पहाड़ी से सोता नदी बहती है जिसके पास एशिया प्रसिद्ध बावड़ी है जो बिना चुने समान्त से बांये हुए है !यह दवापर युग मैं पनावो द्वारा 2500 चट्टानों से बांये गई थी !


माता जी की कथा :-
श्री मद भगवत के अनुसार ननद गोप की घर कन्या का जनम हुआ ,जो श्री क्रिशन की जगह कार्ग्रह मैं पहुची !उस कन्या को जब कंस ने मरने की कोशीस करी तो वह उस के हाथ से चोट गयी !तभी अकस्वानी हुए की ये अदीशक्ति माता है जो कलयुग मैं जोगमाया के नाम से प्रशिद होंगी !इन्होने दुर्गम नमक दांव का वध किया था,वह  जगह को दजदाह के नाम से जनि गई!
वह स्थान महाभारत कालीन विराटनगर है !जहाँ पर पांडवो ने अज्ञातकाल निकला था !यहाँ आज भी शीला पर देवी की पद चिन्ह  है !
सरुन्द गाँव मैं स्थित होने की वजह से इन्हें सरुन्द माता की नाम से भी जाना जाता है !जाटू सिंह जी को बचने के लिए इन्होने चील का रूप लिया था इस कारन से इन्हें चीलाय भी कहते है !
इनका मेला वैसाख सुदी छअथ से अस्ठ्मी तक लगता है !


लोक धरना अनुसार :-
5502 वर्ष पुर्व वैसाख सुदी सप्तमी को पांड्वो दवारा पर्वत की शिखर पर माता की मूर्ति को सतापित किया गया !कहा जाता है की जब पांडव जुए मैं हार कर अग्यात्वास जाना पड़ा तब अकस्वानी हुए की तुम सती माता को स्मरण करो माता का स्मरण कर पांडवो ने विरत नगर मैं प्रवेश कीया !यहं उन्हें सोने की चिड़िया (शकुन स्वरण पक्षी)दिखा जीसे उन्होंने सुभ मान कर अपने कुलदेवी की स्तापना की !