तंवर वंशावली
अर्जुन के सूत सो भये अभिमन्यु नाम उदार !
तिन्हते उत्तम कुल भये तोमर क्षत्रिय उदार !
इस वंश का नाम महाभारत की बाद आया !कहा जाता है की सृष्टी की रचयता भगवन विष्णु से कमल की उत्पत्ति हुई !कमल से ब्रह्मा,ब्रह्मा से अत्री,अत्री से चंद्रमा की उत्पत्ति मानी जाती हैं !चंद्रमा से वंश आगे बढ़ने की कारन यहाँ वंश 'चन्द्रवंश'कहलाया !
चंद्रमा की तीसवी पीढ़ी मैं परम प्रतापी कुरु का जनम हुआ,इसी कारन ये वंश आगे 'कुरु वंश'से जाना जाने लगा !कुरु वंश की 14 वि पीढ़ी मैं पाण्डु का जनम हुआ !तंवर वंश की उत्पत्ति की बारे मैं तारक व् कथ्य प्रचलित हैं:-
{1}पांडव वंसी अर्जुन ने नागवंशी क्षत्रियो को अपना दुश्मन बना लिया !नागवंशी क्षत्रियो ने पांड्वो को मारने का प्रण ले लिया था,पर पांडवो के राजवेध धन्वन्तरी के होते हुए वे पंडो का कुछ न बिगड़ पाए !अतः उन्होंने धन्वन्तरी को मर डाला !इसके बाद अभीमन्यु पुत्र परीक्षित को मार डाला !परीक्षित के बाद उसका पुत्र जन्मेजय राजा बना !अपने पिता का बदला लेने के लिए जन्मेजय ने नागवंश के नौ कूल समाप्त कर दिए !नागवंश को संपत होता देख उनके गुरु आस्तिक जो की जत्कारू के पुत्र थे,जन्मेजय के दरबार मैं गए व् सुझाव देय की किसी वंश को समूल नस्त नहीं किया जाना चाहिए व् सुझाव दिया की इस हेतु आप को यग्य करे !महाराज जन्मेजय के पुरोहित कवष के पुत्र तुर इस यग्य की अध्यक्ष बने !इस यग्य मैं जन्मेजय के पुत्र,पोत्र अदि दीक्षित हुए !क्योकि इन सभी को तुर ने दीक्षित किया था इस कारन ये पांडव तुर,तोंर या बाद मैन्तान्वर या तोमर कहलाने लगे !
[राजपूत वंशावली पृष्ठ 228 ]
लेखक - ठा.इश्वर सिंह मठाथ
{2}कुछ विद्वानों का मत है की तुर,तुंवर,तोंर,तोमर,तंवर अदि का जैन साहितिक भाषा मैं अर्थ होता हैं 'सर्वोच्च'चुकी अदि काल से इन्द्रप्रस्त की गद्दी को सर्वोच्च माना गया था !अतः इनके वंसज तुंवर,तोंर,तोमर,तंवर अदि कहलाये !
{3}बद्वो की भाई की अनुसार तुन्ग्पाल(तोमरपाल)के वंसज तोमर या तंवर कहलाये 