Monday, 12 March 2012

उदय सींह जी 
                           (संस्थापक  भूदोली ,तन्वारावाटी )

संक्षिप्त इतीहास :-

   श्री उदय सींह जी महाराज राज श्री डूंगर सींह जी के छोटे पुत्र थे इनका निवास स्थान गावंडी था !महाराज का जनम विक्रम सम:1585 के लगबघ मन जाता है !डूंगर सींह जी वी.स. 1590 मै रायमल शेखावत व् हिन्दाल के बीच हुए युद्ध मैं काम आये !उनके भाई  श्री भीवराज का राज्य अभीसेक हुआ मगर दूसरी रानी के पुत्र होने की वजह से आप के साथ भेदभाव होने लगा !अतः उनकी माता हाड़ी रानी उन्हें लेकर अपने पीहर बूंदी ले कर चली गई !उदय सींह जी का लालन पालन वही पर हुआ !
               जब उदय सींह जी 15 साल के हुए तो उन्होंने अपनी माता से आग्रह किया की हमे अपने देश चलकर भाई भीवराज से अपने राज्य का हीस्सा लेकर वही रहना चाहीये !इस पर उनकी वीदुशी माता ने कहा की अपने पिता जी के स्वामी भगत सेवको मैं से नाथूराम मीना को अपने साथ रखना !यह हर वक्त आप की रक्षा व् देख रेख करता था !
        श्री उदय सींह जी गावड़ी पहुंचे तो आप के भाई भीवराज जी के द्वारा कहा गया की खंडेला राव(जो की उस समय नीर्वानो के अधीन था)हमारे राज्य की गायो को ले गाये हैं अगर तुम उन्हें ले कर आगये तो तुमे अधिकार दे दूंगा !
           यह आज्ञा पा कर आप ने खंडेला पर आक्रमण का गायो को मुक्त करा लिया !वापस आते समय गावड़ी से दो कोस पहले चंद्रभागा नदी के किनारे विश्राम करने लगे !वह आप ने नाथूराम मीना को कहा की मेरा मन यहाँ पर बसने को करता है तुम शगुन वीचारो,इस पर नाथूराम मीना ने शगुन वीचारे व् बताया की महराज आपके की यहाँ हमेशा खांडे जीत रहेगी व संम्पन गाँव रहेगा !तब सभी सत्यों सहीत गावड़ी पधारे और कुछ समय बाद 1636 वी.सम. मैं गाँव (भूदोली)बसाया !
       महाराज उदय सींह की तीन शादीयाँ हुई,तीनो रानीयों से कोई संतान ना होने पर अपने भाई के लड़के भगवानदास जी को गौड़ लीया !संयोग से गौद संस्कार होने के बाद तीनो रानीयों के तीन पुत्र हुए जिनके नाम श्री केशवदास ,श्री देवदास व श्री नरदास रखे गए !आप की पुत्र होने पर भगवानदास जी (दात्क्पुत्र) ने कहा की मैं अब्ब यहाँ नहीं रहूँगा !और श्री भगवानदास जी ने चीपलाटा की जागीर प्राप्त की !
     
भूदोली के गाँव :-
       आगवाडी,कुर्बडा,माल्यवाली,झीराना,खोरा,ढाणी हरी सींह,ढाणी बहादुर सींह,नालिवाला हैं इन सभी गाँव मैं उदय सींह जी के वंसज रहते हैं !

मर्त्यु :-

   उदय सींह जी मर्त्यु धोखे से हुई थी !जब आप अपने बड़े भाई से मीलने गावड़ी गए तो ब्रह्मण कन्या द्वारा आपको जहर दे देय गया !आप अपने अनुचरो सहीत भूदोली आ रहे थे तब आप को आभास हो गया और आप ने कहा की मेरा घोडा जहाँ रुके वहीँ पर मुझे तपना दे जाये !घोडा उद्दालक मुनि की धुनी पर आकर रुक गया ,वही पर आप को श्री भगवानदास जी द्वारा तपना दे देगाये !उस दिन भाद्रपद अमावस्या थी !इस दीन आप की पुन्य तीथी पर मेला लगता है !इसी स्थान पर आप का भव्य मंदिर बनया गया !आप की पूजा लोकदेवता की रूप मैं की जाते हैं ! 

Sunday, 11 March 2012


चनद्रवंशी क्षत्रीय तंवर वंश   




                    अर्जून श्री कृषण के साथ कुरुक्ष्ट्र मैं ज्ञान का बोध करते हुए 


चनद्रवंशी महाराज भूव्न्पति  के पुत्र मरज रणजीत जी ने 65 वर्ष 10 माह 04 दिन राज्य कीया !इनकी नवी पीढ़ी पर महाराज नरहरिदेव जी हुए इन्होने 45 वर्ष 11 माह 23 दिन राज्य कीया !इनकी सातवी पीढ़ी पर मह्रक भीमपाल जी ने 58 वर्ष 05 माह 08 दिन राज्य कीया!इनके पुत्र क्षेमक जी  हुए इन्होने 48 वर्ष 11 माह 21 दिन राज्य कीया !इनके बाद भारत वंश का राज्य कुछ समय के लिए एनी वन्सो के अधीन चला गया !इनके पुत्र रणंजय जी की पुत्र श्री इन्दार्धमन जी ने पुनः भारत वर्ष की सत्ता सम्हाली !महाराज ने एक मंदिर भगवन विष्णु का लकोट(लाहोर)मैं बनवाया !इनकी पन्दह्र्वी पीढ़ी पर महराज सूरज जी हुए व् इनकी सातवी पीढ़ी पर महराज नर्बहंपाल जी हुए !इनके पुत्र राज्रीशी तुम्र्पाल जी हुए इनके वंसज तंवर(तोमर)कहलाये !
    युदिश्टर सम्वंत 2656 मैं राज्रीशी तुम्र्पाल जी ने तुंगभद्रा नदी पर बोध मत के चार सो (400)प्रक्षिसित अनुययो को साथ लेकर एक सभा की जिसमे उनके वीचारो को परिवर्तित कीया व् क्षत्र्य वंश के लिए नियम बनाए !जिनमे मुख्यत अपने गोओर,परवर,साखा को  याद रखना,शत्रु को क्षमा मांगने पर माफ़ करना,गाय,ब्राहमण,स्त्री,को सम्मान देना अदि नियम बना कर सपथ दिलाई  !महाराज राज्रीशी का विवाह राष्ट्रावर रजा कनाक्पल की पुत्री यशोदा के साथ हुआ !इनके चार पुत्र हुए श्री शिवराज,भोजराज,पूंजराज और चन्द्राज !युदिश्तर सम्वंत २७१२ मैं श्री पूंजराज ने यूनान के राजा सिकंदर को पराजित कर विजयश्री प्राप्त करी !महराज पूंजराज का वीवाह चौहान वंसज अनंगपाल जी की पुत्री यशोधरा के साथ हुआ !इनके पुत्र महाराज गिरिराज हुए !इनके चोथी पीढ़ी पर महाराज वीरभान हुए !इन्होने युधिस्तर सम्वंत 2958  मैं पुनः क्षत्रीय को संघटित कर सभा की व् सद्मार्ग पर चलने की सपथ ली !युधिस्तर सम्वंत 3044 वय्तित होने पर परमार राजा विक्रमादित्य ने विक्रम सम्वंत प्रारम्भ कीया !
      महराज युधिस्तर सम्वंत 3101 व् विक्रम सम्वंत 57 से इसवी सन आरंभ हुआ !इनकी 11 वी पीढ़ी पर महराज मंगल्पल जी पुत्र प्र्ताप्पाल (गोप्सद जी)महराज का नाम गोप्सद था पर महाप्रतापी होने की कारन ये प्रताप्पाल के नाम से प्रशिध हुए !महराज 560 मैं हस्तीनापुर की मांडलिक राजा हुए !इनके पञ्च रानिय थी !बड़ी रानी के चार पुत्र थे जिनमे से बड़े कंद जी थे !कंद जी के पुत्र अनाग्पल जी हुए !महराज प्र्ताप्पाल जी के दुसरे पुत्र जत्पल जी व् तीसरे पुत्र सोमपाल जी चोथे पुत्र वीरपाल जी हुए !दूसरी रानी के तीन पुत्र तन्वार्पाल जी,रेक्पल जी व् jमहिपाल जी हुए !तीसरी रानी के पञ्च पुत्र संकल्पाल,उग्रपल,विशय्पल जी व् कर्यपाल जी हुए!चोथी रानी के दो पुत्र पहुश्पल जी व् लोध्पल जी हुए !पांचवी रानी के तीन पुत्र jहरपाल इ,जग्भंपल जी तथा समुद्रपल जी हुए !श्री जटपाल जी के वंसज जाटू तंवर कहलाये !इनके राजधानी तोध्गढ़ थी !जाटू तन्वारो की पञ्च साखा हुए शिपल,कालीया,सेडा,भेया,बोदाना  !इस प्रकार चन्द्र vansही क्षत्र्याओं की सोलह शाखा हुए !इनमेजाटू,जावला,इन्दोलिया,पोर्वंसी,हर्वंशी,बिसारे,जग्भानोत,सोमवल,रेकवाल,रुनेचा,ग्वेलेरा,बेरुवर,बिल्दार्य,अगन्सुन्दी आदीका प्रमाण वंश लेखकको की बही से मिलता है !तंवर सम्पुरण भारत मैं विघमान है !जिनका सहसन सभी जगह रहा है !
         महराज अनाग्पल जी की पुत्र वासदेव जी के पुत्र गंग्देव जी के 11 वी पीढ़ी पर महराज जुनाह्पल हुए !इनके चार पुत्र हुए बड़े पुत्र हुए अनंगपाल जी !महराज अनंगपाल जी डेल्ही के अंतिम राजा हुए !महराज के पुत्र नहीं था केवल दो पुत्री थी !महराज अनंगपाल ने अपने दोह्त्र प्रथ्वीराज चौहान को देलही का राज्य सोंप कर तीर्थ यात्रा पर चले गए !महराज अनंगपाल जी की छोटे भाई jसलमान इ ने गढ़ नर्ड का राजपाट संभाला !महराज प्रताप्पाल के पुत्र जग्भंपल ने विक्रम सम्वंत 630 मैं अपने राजधानी लाकोट(लाहोर)मैं बनाई !इनके पुत्र महराज जग्वाहन्पल जी ने विक्रम सम्वंत 650 मैं अश्वमेघ यग्य कीया जिसमे पांच सो मन से ज्यदा की समध का उपयोग हुआ था !इन्होने विक्रम सम्वंत 655 मैं लाहोर को छोड़ कर वापस हस्तीनापुर को राजधानी बनया !इनकी छठी पीढ़ी पर महराज ब्रहमपाल जी हुए !इनके पुत्र महराज पत्तान्पल जी हुए !महराज पतंपल जी ने विक्रम संवंत 828 मैं देलही के दक्षिण मैं पाटन नगर बसाया !इनके आठवी पीढ़ी मैं महराज संग्पल जी  हुए !उनके दो पुत्र हुए राजपाल जी व् वीरपाल जी !वीरपाल जी को गढ़ नर्ड के राजा नीहाल जी ने गोद ले लिया !राजा वीरपाल जी ग्यारवी पीढ़ी पर राजा प्रथ्वीराज जी हुए !इनके चोदह रानी  थी !इन रानीयो से बत्तीश पुत्र हुए !इसी से पाटन के पास तंवर बत्तीसी बोली जाते हैं !इनके सातवी पीढ़ी पर महराज लख जी हुए !जिन्हें राव के उपाधी मीली !
        यह सम्पुरण तथ्य वंश लेखको की बहीयो मैं दर्ज हैं !