(संस्थापक भूदोली ,तन्वारावाटी )उदय सींह जी
संक्षिप्त इतीहास :-
श्री उदय सींह जी महाराज राज श्री डूंगर सींह जी के छोटे पुत्र थे इनका निवास स्थान गावंडी था !महाराज का जनम विक्रम सम:1585 के लगबघ मन जाता है !डूंगर सींह जी वी.स. 1590 मै रायमल शेखावत व् हिन्दाल के बीच हुए युद्ध मैं काम आये !उनके भाई श्री भीवराज का राज्य अभीसेक हुआ मगर दूसरी रानी के पुत्र होने की वजह से आप के साथ भेदभाव होने लगा !अतः उनकी माता हाड़ी रानी उन्हें लेकर अपने पीहर बूंदी ले कर चली गई !उदय सींह जी का लालन पालन वही पर हुआ !
जब उदय सींह जी 15 साल के हुए तो उन्होंने अपनी माता से आग्रह किया की हमे अपने देश चलकर भाई भीवराज से अपने राज्य का हीस्सा लेकर वही रहना चाहीये !इस पर उनकी वीदुशी माता ने कहा की अपने पिता जी के स्वामी भगत सेवको मैं से नाथूराम मीना को अपने साथ रखना !यह हर वक्त आप की रक्षा व् देख रेख करता था !
श्री उदय सींह जी गावड़ी पहुंचे तो आप के भाई भीवराज जी के द्वारा कहा गया की खंडेला राव(जो की उस समय नीर्वानो के अधीन था)हमारे राज्य की गायो को ले गाये हैं अगर तुम उन्हें ले कर आगये तो तुमे अधिकार दे दूंगा !
यह आज्ञा पा कर आप ने खंडेला पर आक्रमण का गायो को मुक्त करा लिया !वापस आते समय गावड़ी से दो कोस पहले चंद्रभागा नदी के किनारे विश्राम करने लगे !वह आप ने नाथूराम मीना को कहा की मेरा मन यहाँ पर बसने को करता है तुम शगुन वीचारो,इस पर नाथूराम मीना ने शगुन वीचारे व् बताया की महराज आपके की यहाँ हमेशा खांडे जीत रहेगी व संम्पन गाँव रहेगा !तब सभी सत्यों सहीत गावड़ी पधारे और कुछ समय बाद 1636 वी.सम. मैं गाँव (भूदोली)बसाया !
महाराज उदय सींह की तीन शादीयाँ हुई,तीनो रानीयों से कोई संतान ना होने पर अपने भाई के लड़के भगवानदास जी को गौड़ लीया !संयोग से गौद संस्कार होने के बाद तीनो रानीयों के तीन पुत्र हुए जिनके नाम श्री केशवदास ,श्री देवदास व श्री नरदास रखे गए !आप की पुत्र होने पर भगवानदास जी (दात्क्पुत्र) ने कहा की मैं अब्ब यहाँ नहीं रहूँगा !और श्री भगवानदास जी ने चीपलाटा की जागीर प्राप्त की !
भूदोली के गाँव :-
आगवाडी,कुर्बडा,माल्यवाली,झीराना,खोरा,ढाणी हरी सींह,ढाणी बहादुर सींह,नालिवाला हैं इन सभी गाँव मैं उदय सींह जी के वंसज रहते हैं !
मर्त्यु :-
उदय सींह जी मर्त्यु धोखे से हुई थी !जब आप अपने बड़े भाई से मीलने गावड़ी गए तो ब्रह्मण कन्या द्वारा आपको जहर दे देय गया !आप अपने अनुचरो सहीत भूदोली आ रहे थे तब आप को आभास हो गया और आप ने कहा की मेरा घोडा जहाँ रुके वहीँ पर मुझे तपना दे जाये !घोडा उद्दालक मुनि की धुनी पर आकर रुक गया ,वही पर आप को श्री भगवानदास जी द्वारा तपना दे देगाये !उस दिन भाद्रपद अमावस्या थी !इस दीन आप की पुन्य तीथी पर मेला लगता है !इसी स्थान पर आप का भव्य मंदिर बनया गया !आप की पूजा लोकदेवता की रूप मैं की जाते हैं !